
विद्यावारिधि, एम.ए.पी.एच.डी – डी लिट अनेक विश्वविद्यालयों के शोध निदेशक एंव साहित्य मंत्री, हिन्दी साहित्य सम्मेल्न, प्रयाग तथा राष्ट्र भाषा प्रचार समिति, व्रधा (महाराष्ट्र)
हे मंत्र कविता के प्र्वतर्क, तंत्र सा जादू किया |
न्व जागरण के गीत गा यंत्र सा काबू किया ||
विश्वकवि, तुम हो मनीषी, अमरता तुमको मिली |
राष्ट्र भारत भारती की स्रस्ता तुमको मिली ||
‘पंजाब-सौर्भ राष्ट्र को दे तुम हुए पुष्पित कम्ल |
‘सुरेश’ तुमने ‘चंद्र’ सम किरणें बिखेरी नित नवल ||
वात्स्ययान से प्रकट गौरव बने तुम वंश के |
पिता का आशिशा पा जीवन्त तुम उस अंश के ||
कविता तुम्हारी मुखर भावों की बनी संगम यहाँ. |
‘निगम’ चिन्तन से मुखर करती गयी ‘अगम’ यहाँ. ||
मनुज के देवत्व का गायन किया हे प्रेम से |
रहस्य उदघाटित किया निज साधना के नेम से ||
चुन पराग विज्ञान-दर्शन-क्ला के हर फूल से |
प्रगति का ॠत छंद नवल तुमने रचा ऋषि मूल से ||
उपासना सरस्वती की साहित्य साधक तुम हुए |
राह में क्ब टिके वे जो कभी कंटक सम हुए ||
उपासना सरस्वती की साहित्य साधक तुम हुए |
राह में क्ब टिके वे जो कभी कंटक सम हुए ||
हाइकू-ग़ज़ल-अणुबन्ध में कवि मंत्र द्रष्टा हिन्दी के |
सानेट रच तुम शेक्सपिअर, मिल्ट्न हुए हिन्दी के ||
सत्य शिव सुंदर साकार सिद्ध तन मन में |
बहु भाषायी लेखन हो तुम रससिद्ध जीवन में ||
भूत वर्तमान भविष्य का इतिहास तुम हो रच रहे |
इच्छा-किया-ज्ञान-बोध का मधुमास तुम हो रच रहे ||
सार्थक करो भविष्य को अब कामना तुमसे यही |
वर्तमान के संकल्पी हो दृढ़ आस्था तुमसे यही ||
अभिवंदन / एक रंगराती रचना मिली, खिली कली हिय आजु
लहु सुरेस नवनेह ज़्लु मन प्रतच्छ रितुराजु |
– (आचार्या) हजारी प्रसाद द्विवेदी
अभिवंदन / दो तम में ज्योतित हुए पुनर्नव
तुम ऋषिकुल के मंत्र पुन पुनर्भव,
मंत्र कवि, शिवस्ते सन्तु पन्थान: !
– महदेवी वेर्मा
अभिवंदन / तीन कवि कर्म के क्रीज़ पर कलम का बल्ला घुमाते
सुरेशचंद्र वात्स्यायन शैली की किसी भी गेंद पर
चौका छ्क्का जमाने में सहज समर्थ हैं |
– (डाँ.) रामकुमार वेर्मा
हे सुर संस्कृति के उन्नय्क शारदा स्वरों के गायक उदगााता गीतों के मंत्रों के कल्पना अन्ल्प ऋषिकल्प ! “बिन्दी” भारत मां की भ्रुमध्यस्था हिन्दी की तेरी सर्जना, पुरस्कार तुमने जो गौरव पाया उपकत उससे राष्ट्र हुआ साधक, तेरी चिर स्माधिका पूरा कब प्रणिधान हुआ |
मदनमास की मादकता में पीकर “मधुसनवाद” तेरी कविता का यह कायल रखता भविष्य के नवविहान की आशा पीड़ा तेरे अन्त्स की अभिवन्दन का यह अवसर शब्द ब्रह्मा के द्वार हर बार मिले |
संस्कृत विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीग़ड |
– डा. आशा शर्मा
कठिन हे समझ पाना अल्पावधि में भीड़ से अलग उस इक मानव को जो वैदिक से अब तक हर काल का द्रष्टा माटी की गंध का ज्योतिर्मय अणुबन्ध मंत्रों का स्त्रष्टा : मंत्र कविता के उद्गाता दर्शन विज्ञान क्ला के ज्ञाता संस्था जेसे इस मनुपूत्र ने मनुपुत्रों के इतिहास को सपष्ट किया हैं
सत्य अौ’ ऋत को आत्म औ’ निज में समज-स्माज के विकार-संस्कार में देखा हैं स्वयं औरों को दिखलाया हैं | अस्वीकारते कभी बुर्जुआ नेशन को, अौर असुर निकदंन प्रगतिशील राष्ट्र को थाप्ते कभी, कभी मनुपुत्रों की प्रगतिकथा के ऋत से पुलकित कभी विश्व की विशद व्यथा से व्यथित संस्था जैसे इस मनुपुत्र की ब्दलती मुख्मुद्रा को देखा है और फुटती उस मुख मुद्रा से दिखी सदा चिंतन की चल रेखा हैं | यंत्र तंत्र की विकृतियो में मंत्र संस्कृति के कवि साधक, भविष्य के द्वार पर तुम्ही हमारे वर्तमान की दस्तक, इस दस्तक के प्रति हम नतमस्तक |
स्नातकोत्तंर हिन्दी विभाग
सनातन धर्म महिला कॅलिज,
लुधियाना |
– Vijay Naresh Negi, IPS
The Fragrance of each short togetherness Once sat on my little soul rivetting my roving mind breathing through me Now a stretch settles upon me and I exhale only the dross of the ditch. This green garden that once bloomed like endless rainbows of a multifloral spring Putrefies now under a stinking dunghill The oceans that once rolled into one to write their hymns upon the sands of my being have receded into the far horizon The day does not dawn and the dark dreadful devilish night sustains me and makes me walk from dark to dark
82/Sector 7, Chandigarh