
आई धरती ले आई अनिल जल माटी बन गई देह बिटिया की नाम रूप की घाटी, गूँज उठी घाटी मे बचपन की तुतली बानी कहता हूँ मैं इस बिटिया की राम कहानी!!!
आया अंबर लाया सूरज चंदा के गहने तारक मणियौ वाले सब मेरी बिटिया ने पहने, पल पल चढ़ता है गहनो पर किरनों का पानी कहता हूँ मैं इस बिटिया की राम कहानी!!!
बाप न इसका मैं न सतीशा इसकी माता है चुन कर कोई कोख प्रकट होना इसको आता है शुंभ निशुंभों पर है मां दुर्गा यही भवानी कहता हूँ मैं इस बिटिया की राम कहानी!!!
अपने नभकी चंदा को छाती से चिपकाता लहरो से थपकाता चंदा लोरी देता झरना लोरी गाता सोजा अरी सुपर्णा तू सोजा!
ऊँघ रहे अंबर में ऊँ ऊँ करते सब तारे डूब रहे अंधेयारे में यह गाँव गली घर सारे, सपनो वाली सरगम में तटके तार बजाता सोई नींद जगाता झरना लोरी गाता सोजा अरी सुपर्णा तू सोजा!
तू क्या जाने होता क्या जब नींद घ्टा सी घिरती हर लेती तन की सुधि को सुधि मन की दूर विचरती, दूर देश की हलचल के चित्र खींचता जाता जल-केमरा चलाता झरना लोरी गाता सोजा अरी सुपर्णा तू सोजा!!!
कौन कहे तू जीवन की किस बगिया की बेला है कौन कहे तेरे उरमें किस जीवन का मेला है, धरती के जीवन स्वर को नभ भरमें गुंजाता (दूर – दूर) मंगल तक ले जाता झरना लोरी गाता सोजा अरी सुपर्णा तू सोजा!!!
अभी रात में मनसे ही सपनोके पथ चलना है नई प्रातमें तन से फिर चलना दूर पहुँचना है, कांटो में बीहड़ बन में नूतन राह बिछाता कांटो में बीहड़ बन में नूतन राह बिछाता अभिनव फूल खिलाता झरना लोरी गाता सोजा अरी सुपर्णा तू सोजा!!!
सोरागी फिर जागेगी जागेगी फिर सोरागी ऐसी है गति धरती की रात सुबह फिर होरागी, सोने जगने के क्रमको क्रम क्रम से अपनाता गीता को दुहराता झरना लोरी गाता सोजा अरी सुपर्णा तू सोजा!!!
रोती आई मानवता युग युग से रोती आई फिर भी असुरो की ताक़त कुछ कम भी होती आई! (नित उसे नोचती) देवशक्ति के बचपन को सपने नए दिखाता यौवन द्रार चढ़ाता झरना लोरी गाता सोजा अरी सुपर्णा तू सोजा!!!
अंन्तरिक्ष यात्रा के युग का वेवस्वत यह मेरा चिंतन है अभी अज्न्मे मनु के हित वाणी का मुकुलित योग सुमन;
अयि मेरी भावी सन्ततियो मेरे तपकी वंशावलियो इशवाकु प्रकट तुमसे होगा जो योग न्ष्ट हो गया आज वह पुन: प्रकट तुमसे होगा, पतझर में सुखी डाली पर मधुऋितु का ऋत फिर फुटेगा ज्वाला को अर्पित ऋत का धवत ज्वाला होकर ही फुटेगा
किसलय में किस लयका होगा डाली के उरसे पुनर्जन्म जब मुकुलित स्वरित उदात नवल ऋत के मधु की होंगे सरगम; ऋत परिवर्तन की मधुकरियो नव सरगम की नव वंशरीयो स्वर ग्राम प्र्कट तुमसे होगा जो षडज नष्ट हो गया आज वह पु्ंन: प्र्कट तुमसे होगा परिणति की मुखरित सरगम पर इक राग नया फिर गूँजेगा फिर शूध तीव्र कोमल कंपन इक ॠचा नई बन गूँजेगा !
ऋषि से राजा का संधिछेद जो आज विश्व में फलीभूत वह चंड-मुंड वह रक्त बीज वह दु:शासन वह शकुनि छूत; इस संधिछेद की अप्सरियो मानव विकृति की रंगरलियो प्रल्लाद प्रकट तुमसे होगा जो मिथक मात्र है अब नृसिह वह पुन: प्रकट तुमसे होगा, तुम नही रहोगे हिरणाक्श नारायण ही फिर प्रकटेगा वह नर का सखा शरण नर की राजश्री रूप फिर प्रकटेगा !!!